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बहन के साथ चूत चुदाई का मजा-3

(Bahan Ke Sath Chut Chudai Ka Maza-3)

होटल की उस रात को एक हफ्ता बीत चुका था, लेकिन दीदी, संगीता, के साथ बिताए पल मेरे दिल-दिमाग पर नशे की तरह छाए थे। उनकी नंगी चूचियों की गर्मी, उनकी रसीली चूत का रस, और वो मादक सिसकारियां मेरे लौड़े में आग लगा देती थीं। हर रात मैं उनकी पैंटी सूंघता, मुठ मारता, और उनकी याद में पागल हो जाता। माँ की पैनी नजरें और घर की तंग गलियां हमें दूर रख रही थीं, लेकिन दीदी की शरारतें थमने का नाम नहीं ले रही थीं। कभी रसोई में मेरी कमर पर चुटकी काटतीं, कभी तौलिए में लिपटी अपनी चूचियों का उभार दिखाकर आँख मारतीं। उनकी हर अदा मेरे लौड़े को बेकरार कर रही थी, और मैं बस एक मौके की तलाश में था।

आखिरकार, मौका मिल गया। मोहल्ले में रामलीला का आयोजन था, और माँ ने कहा, “अमित, संगीता को रामलीला दिखाने ले जा। देर मत करना, और दोनों साथ रहना।” मेरे दिल में जैसे आतिशबाजी शुरू हो गई। मैंने दीदी की तरफ देखा, जो हॉल में बैठकर मैगजीन पलट रही थीं। उनकी आँखों में वो शरारती चमक थी, जैसे वो मेरे प्लान को भांप चुकी हों। “ठीक है, माँ, मैं दीदी को ले जाऊंगा,” मैंने कहा, और दीदी ने मैगजीन के पीछे छुपकर होंठ दबाए, चुपके से मुस्कुराया।

शाम को मैंने अपनी पुरानी हीरो होंडा बाइक निकाली, जिसकी सीट पर दीदी की गर्मी की यादें बसी थीं। मैंने फटी नीली जीन्स और टाइट काली टी-शर्ट पहनी थी, और मेरा लौड़ा पहले से ही तनने को बेताब था। दीदी तैयार होकर आईं—गहरे हरे रंग की सलवार-कमीज, जो उनकी गोरी चमड़ी पर जंगल की हरियाली जैसी चमक रही थी। उनकी सलवार टाइट थी, उनकी मांसल जांघों और गोल चूतड़ों को हल्के-हल्के उभार रही थी। कमीज उनकी चूचियों को कसकर लपेटे थी, और उनके निप्पल हल्के-हल्के उभरे हुए थे, जैसे हरे कपड़े में छुपे दो रसीले अंगूर। उनका हरा दुपट्टा कंधों पर ढीला-ढाला लटक रहा था, और हल्की हवा में उड़कर उनकी पतली कमर को उजागर कर रहा था। “चल, सोनू, देर हो रही है,” दीदी ने कहा और मेरे पीछे बाइक पर बैठ गईं। उनकी चूचियां मेरी पीठ से सट गईं, और उनकी नरम जांघें मेरी कमर को छूने लगीं। मेरा लौड़ा जीन्स में तन गया, जैसे कह रहा हो, “आज रात आग लगेगी।”

मैंने बाइक स्टार्ट की और घर से निकल पड़ा। रामलीला का मैदान दूसरी तरफ था, लेकिन मैंने जानबूझकर तंग गलियों का रास्ता लिया, जो मेरे स्कूल के पुराने प्लेग्राउंड की ओर जाता था। रात के आठ बज रहे थे। मुंबई की गलियां हल्की चहल-पहल से भरी थीं, लेकिन ठंडी हवा दीदी के दुपट्टे को उड़ा रही थी। उनकी चूचियों की गर्मी मेरी टी-शर्ट के जरिए मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी। दीदी ने मेरी कमर को हल्के से पकड़ा और मेरे कान के पास फुसफुसाईं, “सोनू, ये रास्ता तो रामलीला की तरफ नहीं जाता। कहां ले जा रहा है, शैतान?” उनकी गर्म सांसें मेरी गर्दन को गुदगुदा रही थीं।

“बस, दीदी, थोड़ा घूमते हैं। रामलीला तो रातभर चलेगी,” मैंने हंसते हुए कहा। दीदी ने मेरी कमर को और जोर से दबाया, “शैतान, मुझे पता है तू क्या करने जा रहा है। रामलीला तो बहाना है, हां?” उनकी आवाज में मस्ती थी, और मेरे लौड़े में और आग लग गई। मैंने बाइक की स्पीड बढ़ाई और कुछ ही मिनटों में हम स्कूल के प्लेग्राउंड पहुंच गए।

प्लेग्राउंड रात के सन्नाटे में डूबा था। चाँदनी की हल्की रौशनी मैदान पर बिखरी थी, और दूर से गाड़ियों की आवाजें हवा में तैर रही थीं। मैदान के एक कोने में एक पुराना, विशाल बरगद का पेड़ था, जिसकी घनी छांव ने हमें दुनिया की नजरों से छुपा लिया। मैंने बाइक पेड़ के नीचे खड़ी की और दीदी को उतरने का इशारा किया। दीदी ने अपने दुपट्टे को कंधों पर ठीक किया और मेरी तरफ देखकर बोलीं, “अब बोल, मेरे जालिम भाई, क्या इरादा है?” उनकी हरी कमीज चाँदनी में चमक रही थी, और उनकी आँखों में कामुक चमक थी।

मैंने बाइक स्टैंड पर लगाई और दीदी के करीब जाकर खड़ा हो गया। पेड़ की छांव में हम अकेले थे, और हवा में एक मादक सन्नाटा था। “क्या, दीदी, तुम्हें नहीं पता मेरा इरादा?” मैंने शरारत से कहा, और उनकी कमीज के ऊपर से उनकी कमर को हल्के से छुआ। दीदी ने हंसकर मेरी छाती पर हल्का सा मुक्का मारा, “बता न, शैतान! रामलीला का बहाना बनाकर मुझे इस जंगल में ले आया, अब क्या करेगा?” मैंने उनकी कमर में बांह डालकर उन्हें अपनी तरफ खींच लिया। उनका मुलायम, गर्म बदन मेरे सीने से सट गया, और उनकी चूचियां मेरी टी-शर्ट के ऊपर दबने लगीं। “बस, दीदी, तेरा प्यार, तेरी गर्मी, और ढेर सारी मस्ती,” मैंने उनके कान में फुसफुसाया, और उनकी गर्दन पर हल्के से होंठ टच किए।

दीदी ने मेरे गले में बांहें डाल दीं और मुझे जोर से गले लगा लिया। उनकी गर्म सांसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं, और उनकी चूचियां मेरे सीने पर रगड़ रही थीं। मैंने उनके रसीले होंठों को अपने होंठों से छुआ, और जैसे ही हमारे होंठ मिले, एक आग सी भड़क उठी। दीदी ने मेरे होंठों को ऐसे चूमा, जैसे कोई प्यासी अपनी प्यास बुझा रही हो। उनकी जीभ मेरी जीभ से लिपट गई, और वो मेरे चेहरे, गालों, और गर्दन को चूमने लगीं, जैसे मेरे हर इंच को चखना चाहती हों। मैंने उनके होंठों को चूसा, उनकी जीभ को अपने मुंह में खींचा, और उनकी कमर को जोर से दबाया। हम दोनों एक-दूसरे में खो गए, जैसे दुनिया में सिर्फ हमारा प्यार और हमारी आग बाकी हो।

हमारी बातें शरारती से कामुक हो चली थीं। “सोनू, तू कितना बदमाश हो गया है,” दीदी ने मेरे होंठों को चूमते हुए कहा। उनकी आवाज में वो मादक लहजा था, जो मेरे लौड़े को तड़पा रहा था। “दीदी, तुमने ही तो मुझे ये सब सिखाया,” मैंने हंसकर जवाब दिया, और उनकी कमीज के ऊपर से उनकी चूची को हल्के से छुआ। दीदी की सिसकारी निकल पड़ी, “आह… शैतान… धीरे…” मैंने उनकी हरी कमीज के ऊपर से उनकी चूचियों को सहलाना शुरू किया। कमीज इतनी टाइट थी कि उनके निप्पल साफ उभर रहे थे, जैसे हरे कपड़े में दो छोटे मोती। मैंने अपने अंगूठों से उनके निप्पलों को हल्के-हल्के रगड़ा, और दीदी की सांसें तेज हो गईं। “सोनू… आह… ये क्या कर रहा है…” वो सिसकार रही थीं। मैंने उनके निप्पलों को कमीज के ऊपर से चुटकी में लिया, हल्के-हल्के मरोड़ा, और फिर धीरे-धीरे मसला। उनकी चूचियां गोल और तनी हुई थीं, और हर मरोड़ पर दीदी का बदन कांप उठता था।

मैंने दीदी को और करीब खींचा, और उनकी कमीज के ऊपर से उनकी चूचियों को जोर-जोर से दबाने लगा। मेरी उंगलियां उनके निप्पलों को रगड़ रही थीं, कमीज का कपड़ा उनके तने हुए निप्पलों पर खिंच रहा था। दीदी मेरे कंधों को कसकर पकड़े हुए थीं, और उनकी सिसकारियां रात के सन्नाटे में गूंज रही थीं। “आह… सोनू… मेरे निप्पल… और जोर से…” मैंने उनके निप्पलों को और जोर से मसला, कमीज के ऊपर से उन्हें खींचा, और दीदी की सांसें अब कराहों में बदलने लगीं। मैंने उनके होंठों को फिर से चूमा, और उनकी चूचियों को सहलाते हुए उनके चूतड़ों पर हाथ ले गया। उनकी हरी सलवार के ऊपर से मैंने उनके मांसल चूतड़ों को सहलाना शुरू किया। उनके चूतड़ इतने नरम थे, जैसे दो रसीले तकिए। मैंने उनके चूतड़ों को जोर से दबाया, और एक उंगली उनकी गांड की दरार में घुसा दी। सलवार के कपड़े के ऊपर से मैं उनकी गांड के छेद को रगड़ने लगा—धीरे-धीरे, फिर तेज। दीदी का बदन कांप रहा था, और वो मेरे होंठों को और जोर से चूमने लगीं। “आह… सोनू… तू… तू मुझे पागल कर देगा…” उनकी सिसकारियां मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूंज रही थीं।

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मेरा दूसरा हाथ उनकी सलवार के ऊपर उनकी चूत पर गया। सलवार और पैंटी के कपड़े के ऊपर से उनकी चूत गर्म और हल्की गीली थी, जैसे कोई गरम भट्टी। मैंने उनकी चूत को धीरे-धीरे रगड़ना शुरू किया, सलवार का कपड़ा उनकी चूत पर खिंच रहा था। मैंने उनकी क्लिट को सलवार के ऊपर से उंगलियों से सहलाया, हल्के-हल्के दबाया, और दीदी की सांसें तेज हो गईं। “आह… सोनू… और… और रगड़… मेरी चूत…” वो सिसकार रही थीं। मैंने उनकी चूत को और जोर से रगड़ा, सलवार के कपड़े को उनकी गीली चूत पर दबाया, और उनकी क्लिट को उंगलियों से मसला। सलवार का हरा कपड़ा उनकी चूत के रस से चिपचिपा हो गया था, और हर रगड़ के साथ दीदी का बदन कांप रहा था। मैंने एक हाथ से उनकी चूत को रगड़ना जारी रखा, और दूसरे हाथ से उनकी चूचियों को मसला, उनके निप्पलों को कमीज के ऊपर से चुटकी में लेकर खींचा।

दीदी की सिसकारियां अब मादक कराहों में बदल रही थीं। “सोनू… आह… मेरी चूत… मेरे निप्पल… और जोर से…” मैंने उनकी चूत को सलवार के ऊपर से और तेज रगड़ा, मेरी उंगलियां उनकी क्लिट को जोर-जोर से मसल रही थीं। सलवार का कपड़ा उनकी गीली चूत से चिपक गया था, और मैंने उनकी क्लिट को सलवार के ऊपर से ही चुटकी में लेकर हल्के-हल्के मरोड़ा। दीदी का दुपट्टा उनके कंधों से सरककर जमीन पर गिर गया, और उनकी हरी कमीज में उनके निप्पल और सख्त होकर उभर आए। मैंने उनकी चूचियों को और जोर से दबाया, उनके निप्पलों को कमीज के ऊपर से मरोड़ा, और उनकी चूत को सलवार के ऊपर से रगड़ने की रफ्तार बढ़ा दी। दीदी की सांसें अब चीखों में बदलने लगीं। “आह… सोनू… मैं… मैं नहीं रुक पाऊंगी…” उनका बदन अकड़ने लगा, उनकी जांघें कांप रही थीं, और मैंने उनकी चूत को और तेज रगड़ा, सलवार के ऊपर से उनकी क्लिट को जोर-जोर से मसला। अचानक दीदी की चीख निकल पड़ी, “आह… मैं… मैं गई… सोनू…” और वो मेरी बाहों में झड़ गईं।

उनका शरीर कुछ पलों के लिए बिल्कुल निढाल हो गया। दीदी मेरे ऊपर गिरने लगीं, उनके पैर कांप रहे थे, जैसे सारा जोश उनके बदन से निकल गया हो। मैंने उन्हें कसकर थाम लिया, उनकी कमर को सहारा दिया, और उनके माथे को चूम लिया। दीदी की सांसें धीरे-धीरे सामान्य हुईं। वो मेरे सीने से सटकर खड़ी रहीं, और फिर मेरे कान के पास फुसफुसाईं, “सोनू, तूने मेरी चड्डी और सलवार दोनों खराब कर दी। अब मैं घर कैसे जाऊंगी?” उनकी आवाज में शर्म थी, लेकिन आँखों में वो मस्ती अभी भी बाकी थी।

मैंने हंसकर पूछा, “बस, ये बता, मजा आया कि नहीं?” दीदी ने शरमाकर मेरी आँखों में देखा, फिर मेरे होंठों पर टूट पड़ीं। वो मुझे फिर से चूमने लगीं, जैसे मेरे जवाब में सारा प्यार उड़ेल देना चाहती हों। उनकी जीभ मेरी जीभ से लिपट रही थी, और उनकी चूचियां मेरी टी-शर्ट पर रगड़ रही थीं। चूमते-चूमते दीदी ने मेरे कान में कहा, “अब तेरा भी पानी निकाल देती हूँ, मेरे जालिम भाई।” मेरे लौड़े में बिजली दौड़ गई।

दीदी मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गईं। उनकी हरी सलवार चाँदनी में चमक रही थी, और उनका दुपट्टा जमीन पर पड़ा था। उन्होंने मेरी जीन्स का बटन खोला और जिप नीचे सरकाई। फिर, मेरी जीन्स और अंडरवियर को एक झटके में मेरे घुटनों तक खींच दिया। मेरा तना हुआ लौड़ा हवा में लहराने लगा, और मेरी गांड नंगी हो गई। दीदी ने मेरे चूतड़ों को अपने नरम हाथों में लिया और उन्हें सहलाने लगीं। उनकी उंगलियां मेरे चूतड़ों को दबा रही थीं, और फिर एक उंगली मेरी गांड की दरार में चली गई। उन्होंने मेरे गांड के छेद को धीरे-धीरे रगड़ना शुरू किया, उनकी उंगली मेरे नंगे छेद पर फिर रही थी। ये एहसास इतना नया और पागल कर देने वाला था कि मेरी सिसकारियां निकल पड़ीं, “आह… दीदी… ये क्या कर रही हो…”

दीदी ने मेरी गांड के छेद को और जोर से रगड़ा, और फिर उन्होंने मेरी जीन्स और अंडरवियर को पूरी तरह उतार दिया। मैं अब नीचे से पूरी तरह नंगा था, सिर्फ मेरी काली टी-शर्ट बाकी थी। दीदी ने मेरे तने हुए लौड़े को अपने नरम, गर्म हाथों में लिया और उसे सहलाने लगीं। उनकी उंगलियां मेरे सुपाड़े पर फिर रही थीं, और मैं सिसकारियां ले रहा था। फिर, बिना एक पल गंवाए, उन्होंने मेरे लौड़े को अपने मुंह में ले लिया। ओह, क्या गर्मी थी उनके मुंह में! दीदी किसी माहिर रंडी की तरह मेरा लौड़ा चूस रही थीं। कभी वो सुपाड़े को जीभ से चाटतीं, उस पर हल्के से दांत गड़ातीं, कभी पूरे लौड़े को गले तक ले जातीं, और कभी मेरे टट्टों को मुंह में भरकर चूसने लगतीं। उनकी जीभ मेरे टट्टों पर लहरा रही थी, और मैं सातवें आसमान पर था।

उनका एक हाथ मेरी गांड पर गया, और वो मेरे नंगे गांड के छेद को फिर से रगड़ने लगीं। उनकी उंगली मेरे छेद को हल्के-हल्के दबा रही थी, जैसे कोई जादू कर रही हो। (लड़कियां, अपने बॉयफ्रेंड या पति के साथ ये जरूर ट्राई करें—ये मर्दों को दीवाना बना देता है!) दीदी का मुंह मेरे लौड़े पर जादू कर रहा था। वो कभी सुपाड़े को चूमतीं, उस पर जीभ फेरतीं, कभी टट्टों को चूसकर मुझे तड़पातीं, और कभी मेरे लौड़े को गले तक लेकर चूसतीं। उनकी उंगली मेरी गांड के छेद को रगड़ रही थी, और ये मजे को दोगुना कर रहा था। मैं उनकी बालों में उंगलियां फेर रहा था, और मेरी सिसकारियां रात के सन्नाटे में गूंज रही थीं, “आह… दीदी… और… और चूसो…”

करीब दस मिनट की इस जोरदार चुसाई के बाद मैं बेकाबू हो गया। “दीदी… मैं… मैं झड़ने वाला हूँ…” मैंने सिसकारी ली। दीदी ने मेरे लौड़े को और गहराई से मुंह में लिया, उनकी जीभ मेरे सुपाड़े पर नाच रही थी। मैं उनके मुंह में झड़ गया। मेरा गर्म वीर्य उनके गले में उतर गया, और दीदी ने एक बूंद भी बर्बाद नहीं की—सारा माल गटक लिया। फिर वो उठीं, अपने पर्स से रूमाल निकाला, और अपने चेहरे को साफ किया। उनकी आँखों में एक मादक चमक थी, जैसे वो अपनी जीत पर इतर रही हों। मैंने उन्हें बाहों में भर लिया और उनके होंठों को चूम लिया। “दीदी, तुम कमाल हो,” मैंने कहा। वो हंस पड़ीं, “तू भी तो मेरा जालिम भाई है।”

हमने कपड़े ठीक किए। मैंने अपनी जीन्स और अंडरवियर वापस पहने, और दीदी ने अपनी गीली सलवार को दुपट्टे से ढका। “रामलीला तो छूट गई,” मैंने हंसते हुए कहा। “कोई बात नहीं, तूने मुझे अपनी रासलीला दिखा दी,” दीदी ने मेरी कमर पकड़ते हुए जवाब दिया। हम बाइक पर घर की ओर निकल पड़े। रात की ठंडी हवा और दीदी की गर्मी ने उस रात को हमारी आखिरी, सबसे यादगार रात बना दिया। हम दोनों जानते थे कि ये पल, ये आग, और ये प्यार हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेगा, भले ही दुनिया इसे गलत कहे।

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