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बहन के साथ चूत चुदाई का मजा-2

(Bahan Ke Sath Chut Chudai Ka Maza-2)

मार्केट की चहल-पहल और चमचमाती दुकानों के बीच मैं और दीदी, संगीता, शॉपिंग के मजे ले रहे थे। मुंबई की गलियां शाम के उजाले में जगमगा रही थीं, और हवा में समंदर की नमकीन खुशबू तैर रही थी। मैंने एक टाइट जीन्स का पैंट और काली टी-शर्ट खरीदी, जो मेरे कंधों पर फिट बैठती थी, जैसे मेरी जवानी को और उभार रही हो। दीदी ने एक गुलाबी रंग की पंजाबी ड्रेस चुनी, जिसका दुपट्टा उनकी चूचियों के उभार को हल्के-हल्के ढकता था, पर उनकी कमर की लचक को छुपा नहीं पाता था। इसके अलावा, उन्होंने गर्मी के लिए एक छोटी सी स्कर्ट और टाइट टॉप लिया, जो उनके कर्व्स को और निखारता था, और दो-तीन रंग-बिरंगी टी-शर्ट्स भी खरीदीं। उनकी हर पसंद में एक शरारत भरी अदा थी, जैसे वो जानबूझकर मेरे दिल में आग लगा रही हों।

शाम ढल रही थी, और घड़ी में सात बजकर तीस मिनट हो चुके थे। दीदी ने सारे शॉपिंग बैग मेरे हाथों में थमा दिए और बोलीं, “सोनू, जरा आगे जाकर मेरा इंतजार कर, मैं अभी आती हूँ।” उनकी आँखों में एक चमक थी, जो मेरे दिल को बेचैन कर रही थी। मैंने देखा, वो एक दुकान के सामने रुक गईं—महिलाओं के अंडरगार्मेंट्स की दुकान। रंग-बिरंगी ब्रा और पैंटी की लाइनें दुकान के शीशे में चमक रही थीं। मैं मुस्कुराया और आगे बढ़ गया। पीछे मुड़कर देखा, तो दीदी का चेहरा शर्म से लाल था। वो दुकानदार से धीमी आवाज में बात कर रही थीं, और बीच-बीच में मेरी तरफ मुस्कुराकर देख रही थीं, जैसे कह रही हों, “देख, तेरे लिए ही ये सब।”

कुछ देर बाद दीदी एक छोटे से काले बैग के साथ मेरे पास आईं। मैं कुछ बोलने ही वाला था कि उन्होंने तपाक से कहा, “अभी कुछ मत बोल, और चुपचाप चल!” उनकी आवाज में शरारत थी, पर चेहरा अब भी लाल था, जैसे कोई गहरा राज छुपा रही हों। हम चुपचाप मार्केट की तंग गलियों से निकल रहे थे, जहां रेहड़ी वालों की आवाजें और लोगों की भीड़ एक अजीब सा संगीत बना रही थी। मैं घर नहीं जाना चाहता था। दीदी के साथ ये पल—उनकी सटती हुई जांघें, उनकी चूचियों का हल्का-हल्का उभार, और वो शरारती मुस्कान—मुझे पागल कर रहे थे। मैं और वक्त चाहता था, उनके और करीब, उनकी गर्मी को और महसूस करने के लिए।

मैंने हिम्मत जुटाकर कहा, “चलो, दीदी, कुछ देर समंदर के किनारे बैठते हैं और भेलपुरी खाते हैं।”
“नहीं, देर हो जाएगी!” दीदी ने मना किया, उनकी आवाज में हल्की सी सख्ती थी।
मैंने जिद पकड़ ली, “अरे, अभी तो सिर्फ साढ़े सात बजे हैं। हम लोग थोड़ी देर बैठकर घर चल देंगे। माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, वो चिंता नहीं करेंगी।”
दीदी थोड़ा सोचकर मुस्कुराईं, “ठीक है, चल, समंदर के किनारे चलते हैं।”

उनके हाँ कहते ही मेरा दिल उछल पड़ा, जैसे कोई बच्चा अपनी मनपसंद मिठाई पाकर फुदकने लगे। हम मार्केट से दस मिनट की पैदल दूरी पर समंदर किनारे पहुंचे। रास्ते में एक भेलपुरी वाले से दो प्लेट भेलपुरी और एक मिनरल वाटर की बोतल ली। समंदर की लहरें तेज थीं, और ठंडी, नम हवा हमारे चेहरों को सहला रही थी। मौसम सुहाना था, जैसे प्रकृति भी हमारे इस गुप्त रोमांच में साथ दे रही हो। हमने एक बड़े पत्थर के पास पैर फैलाकर बैठ गए, चारों तरफ बिखरे बड़े-बड़े पत्थरों ने हमें थोड़ी गोपनीयता दी, जैसे कोई दीवार खड़ी कर दी हो।

दीदी ने काले रंग की स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला टॉप पहना था, जिसमें उनकी चूचियां हल्के-हल्के हिल रही थीं, जैसे मुझे ललकार रही हों। हम लोग समंदर के किनारे पास-पास पैर फैलाकर बैठ गए। समंदर का पानी पीछे लहरा रहा था, और उसकी गर्जना हमारे दिल की धड़कनों से ताल मिला रही थी। वहां खूब जोरों की हवा चल रही थी, और समंदर की लहरें तेज थीं। इस समय बहुत सुहाना मौसम था। हम लोग भेलपुरी खा रहे थे और बातें कर रहे थे—कॉलेज की बकवास, मोहल्ले की गपशप, और कुछ फालतू की बातें।

दीदी मुझसे सटकर बैठी थीं, उनकी नरम जांघें मेरी जांघों से छू रही थीं। मैं कभी-कभी उनके चेहरे को देख रहा था—उनके गुलाबी होंठ, जो भेलपुरी खाते वक्त हल्के-हल्के हिल रहे थे, उनकी चमकती आँखें, और वो शरारती मुस्कान, जो मेरे लौड़े में आग लगा रही थी। एक बार ऐसा मौका आया, जब दीदी भेलपुरी खा रही थीं, तभी हवा का एक तेज झोंका आया, और उनकी स्कर्ट उनकी जांघों के ऊपर तक उड़ गई। उनकी गोरी-गोरी, चिकनी जांघें चाँदनी की रौशनी में चमक रही थीं, जैसे कोई मखमली चादर बिछी हो। दीदी ने अपने जांघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उन्होंने पहले आराम से भेलपुरी खाई, रूमाल से हाथ पोंछे, फिर धीरे से स्कर्ट को जांघों के नीचे किया और पैरों से दबा लिया।

वैसे तो हम जहां बैठे थे, वहां अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रौशनी में मुझे दीदी की गोरी-गोरी जांघों का पूरा नजारा मिला। उनकी जांघें इतनी मुलायम और गोल थीं कि मेरा लौड़ा पैंट में तन गया। उस पल में मुझे लगा, जैसे दीदी जानबूझकर मुझे तड़पा रही हों। दीदी की जांघों को देखकर मैं कुछ गर्म हो गया, मेरी सांसें तेज हो रही थीं, और मेरा लौड़ा पैंट में तंबू बनाए हुए था।

जब दीदी ने अपनी भेलपुरी खा चुकी, तो मैंने धीरे से पूछा, “दीदी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?”
दीदी ने फौरन पूछा, “क्यों?” उनकी आँखों में शरारत थी।
मैंने कहा, “वहां हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।”
दीदी ने मुस्कुराते हुए पूछा, “यहां क्या, हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?”
“लेकिन वहां हमें कोई नहीं देखेगा!” मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए धीरे से कहा।

तब दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोलीं, “तुझे लोगों की नजरों से दूर क्यों बैठना है?”
मैंने आँख मारते हुए कहा, “तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है।”
दीदी मुस्कुराकर बोलीं, “हाँ, मालूम तो है, लेकिन सिर्फ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे। हम लोग को वैसे ही काफी देर हो चुकी है।” वो उठकर पत्थरों के पीछे चल पड़ीं।

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मैं भी झट से उठा, पहले अपना बैग संभाला, और दीदी के पीछे-पीछे चल पड़ा। वहां दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी सी जगह थी, जहां से हमें कोई देख नहीं पाएगा। हवा की सनसनाहट और समंदर की लहरों की आवाज ने उस जगह को और गुप्त बना दिया था। मैंने जाकर वहां पहले अपने बैग को रखा और फिर जमीन पर बैठ गया। दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गईं। वो मुझसे करीब एक फुट की दूरी पर थीं। मैंने कहा, “दीदी, और पास आकर बैठो।” दीदी थोड़ा सा सरककर मेरे पास आ गईं, और अब उनके कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे।

मैंने दीदी के गले में बाहें डालकर उन्हें और पास खींच लिया। उनकी गर्म सांसें मेरे गालों को छू रही थीं। मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा, समंदर की लहरों की आवाज मेरे दिल की धड़कनों से ताल मिला रही थी। फिर मैंने दीदी के कान के पास अपना मुंह ले जाकर धीरे से कहा, “आप बहुत सुंदर हो।”
“सोनू, क्या तुम सच बोल रहे हो?” दीदी ने मेरी आँखों में आँखें डालकर चिढ़ाते हुए कहा।
मैंने उनके कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए कहा, “मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।”
“मेरे लिए?” दीदी धीरे से बोलीं, उनकी आवाज में एक अजीब सी कशिश थी।
मैंने फिर धीरे से पूछा, “मैं तुम्हें किस कर सकता हूँ?”

दीदी कुछ नहीं बोलीं और अपना सिर मेरे कंधों पर टिकाकर आँखें बंद कर लीं। मैंने उनकी ठुड्डी पकड़कर उनका चेहरा अपनी तरफ घुमाया। दीदी ने एकाएक मेरी आँखों में झांका और फिर से आँखें बंद कर लीं। मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था। मैंने अपने होंठ उनके रसीले, गर्म होंठों पर रख दिए। ओह! भगवान, दीदी के होंठ इतने नरम और मिठास से भरे थे, जैसे कोई गुलाब की पंखुड़ी। जैसे ही मैंने अपने होंठ उनके होंठों पर रखे, दीदी के गले से एक घुटी-सी सिसकारी निकल गई। मैं उन्हें चूमता रहा, उनकी जीभ को अपनी जीभ से छुआ, और हमारी सांसें एक हो गईं। दीदी भी गर्म हो रही थीं, उनकी सांसें तेज थीं, और उनका बदन हल्के-हल्के कांप रहा था।

दीदी मेरे दाहिने तरफ बैठी थीं। मैंने अपने दाहिने हाथ से उनकी एक चूची पकड़कर दबाने लगा। इस बार कोई डर नहीं था—न माँ का, न किसी और का। मैं इत्मीनान से उनकी चूची से खेल रहा था। मैंने टॉप के ऊपर से उनकी चूची को जोर-जोर से मसला, उनके निप्पल को उंगलियों से खींचा, जैसे कोई नाजुक फूल सहला रहा हो। फिर मैंने बायां हाथ उनके टॉप के अंदर घुसाया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी नरम, गर्म चूचियां पकड़ीं। ब्रा की रगड़ से थोड़ा अटपटा लग रहा था, इसलिए मैंने अपने हाथ निकाले और दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा। मैंने धीरे-धीरे उनके टॉप को ऊपर उठाया, और दीदी ने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उनकी दोनों चूचियों को ब्रा के ऊपर से पकड़कर जोर-जोर से मसलना शुरू किया। उनकी चूचियां इतनी तनी और गोल थीं कि मेरे लौड़े में आग लग गई।

दीदी की सिसकारियां तेज हो रही थीं, “आह… सोनू… धीरे…” मैंने उनकी ब्रा के हुक खोलने की कोशिश की। ब्रा इतनी टाइट थी कि हुक खुलने में वक्त लगा, पर आखिरकार एक झटके में खुल गया। ब्रा ढीली होकर उनकी चूचियों पर लटक गई। दीदी कुछ नहीं बोलीं। मैंने ब्रा को पूरी तरह हटाया, और पहली बार उनकी नंगी चूचियां मेरे सामने थीं—गोरी, गोल, और तनी हुई, जैसे दो रसीले संतरे, जिनके ऊपर गुलाबी निप्पल कड़क होकर मुझे बुला रहे थे। मैंने अपने दोनों हाथों से उनकी चूचियों को पकड़ लिया। उनका नरम, गर्म एहसास मेरे लौड़े में बिजली दौड़ा रहा था। मैंने उनकी चूचियों को जोर-जोर से मसला, उनके निप्पल को उंगलियों से दबाया, हल्के-हल्के मरोड़ा। हर बार जब मैं उनके निप्पल खींचता, दीदी छटपटातीं, और उनकी सिसकारियां तेज हो जातीं, “आह… सोनू… और धीरे… दुखता है…”

मैंने बहुत देर तक उनकी चूचियों को पकड़कर मसलने के बाद अपना मुंह नीचे किया और उनके दाहिने निप्पल को अपने मुंह में ले लिया। दीदी ने अभी भी अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। जैसे ही मेरे होंठ उनकी चूची पर लगे, दीदी ने आँखें खोल दीं और मुझे देखा। मैं उनके निप्पल को चूस रहा था, जीभ से चाट रहा था, हल्के से काट रहा था। दीदी की सांसें जोर-जोर से चलने लगीं, और उनका बदन उत्तेजना से कांपने लगा। मैं बारी-बारी दोनों चूचियों को चूस रहा था, एक को मुंह में भरता, दूसरे को हाथ से मसलता। दीदी ने मेरे हाथ कसकर पकड़ लिए, उनकी सिसकारियां अब मादक कराहों में बदल गई थीं, “आह… सोनू… क्या कर रहा है… आह…”

अचानक मुझे एक तीखी, कामुक खुशबू आई। ओह माय गॉड! मैंने अपनी दीदी की चूत का पानी सिर्फ उनकी चूची चूस-चूसकर निकाल दिया था? मैंने उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मेरा हाथ उनके पेट पर रखकर नीचे की तरफ ले जाने लगा और धीरे-धीरे उनकी स्कर्ट के हुक तक पहुंच गया। दीदी ने मेरा हाथ पकड़कर बोलीं, “अब और नीचे मत ले।”
मैंने पूछा, “क्यों?”
दीदी तब मेरे हाथ को और जोर से पकड़ते हुए बोलीं, “नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।”
मैंने झट से दीदी को चूमकर बोला, “गंदा क्यों है? क्या तुम झड़ गईं?”
दीदी ने बहुत धीमी आवाज में कहा, “हाँ, मैं झड़ गई हूँ।”

मैंने फिर दीदी से पूछा, “दीदी, मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?”
“हाँ, सोनू, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतने उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई,” दीदी ने मुस्कुराकर कहा।
मैंने भी मुस्कुराकर पूछा, “क्या तुम्हें अच्छा लगा?”
दीदी मुझे पकड़कर चूमते हुए बोलीं, “मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झड़ना और भी अच्छा लगा।”

दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था। उनके होंठों की गर्मी और मिठास ने मेरे लौड़े में और आग लगा दी। दीदी ने अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हुईं और बोलीं, “सोनू, आज के लिए इतना सब काफी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।” मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़कर चुम्मा लिया, और हम सड़क की तरफ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा।

थोड़ी दूर चलने के बाद दीदी रुकीं और बोलीं, “मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।”
मैंने फौरन पूछा, “क्यों?”
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोलीं, “नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पैंटी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “दीदी, मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?”
दीदी ने मेरी एक बांह पकड़कर कहा, “सोनू, ये गलती सिर्फ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।”

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हम लोग चुपचाप चलते रहे, और मैं सोच रहा था कि दीदी की समस्या को कैसे दूर करूं। एकाएक मेरे दिमाग में एक बात सूझी। मैंने फौरन दीदी से बोला, “एक काम करते हैं। वहां पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहां जाओ और अपनी पैंटी को बदल लो। अरे, तुमने अभी-अभी जो पैंटी खरीदी है, वहां जाकर उसको पहन लो और गंदी हो चुकी पैंटी को निकाल दो।”
दीदी मुझे देखते हुए बोलीं, “तेरा आइडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपनी पैंटी बदलकर आती हूँ।”

हम लोग टॉयलेट के पास पहुंचे, और दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पैंटी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ चल दीं। जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगीं, मैंने धीरे से बोला, “तुम अपनी पैंटी चेंज कर लेना, तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज की है या नहीं!”
दीदी मेरी बात सुनकर हंस पड़ीं और बोलीं, “बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।” दीदी शरमाकर टॉयलेट चली गईं।

करीब पंद्रह मिनट बाद दीदी टॉयलेट से लौटकर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए। हमें बस जल्दी ही मिल गई, और बस में भीड़ बिल्कुल नहीं थी। बस करीब-करीब खाली थी। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जाकर बैठ गए। सीट पर बैठने के बाद मैंने दीदी से पूछा, “तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?”
दीदी मेरी तरफ देखकर हंस पड़ीं।
मैंने फिर पूछा, “बताओ न, दीदी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?”
तब दीदी ने धीरे से कहा, “हाँ, सोनू, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।”
मैंने फिर कहा, “मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?”
दीदी ने मेरी तरफ देखा और बोलीं, “हाँ, बोल।”
“मैं तुम्हें तुम्हारी नई पैंटी और ब्रा में देखना चाहता हूँ,” मैंने शरारत से कहा।
दीदी फौरन घबराकर बोलीं, “यहां? तुम मुझे यहां ब्रा और पैंटी में देखना चाहते हो?”
मैंने समझाते हुए कहा, “नहीं, यहां नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पैंटी में देखना चाहता हूँ।”

दीदी फिर बोलीं, “पर घर पर कैसे होगा? माँ घर पर होगी। घर पर ये संभव नहीं है।”
मैंने कहा, “कोई समस्या नहीं है। माँ घर पर खाना बना रही होंगी, और तुम रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी, जैसे तुम रोज करती हो। लेकिन जब तुम कपड़े बदलो, रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठकर तुम्हें ब्रा और पैंटी में देख लूंगा।”
दीदी मेरी बात सुनकर बोलीं, “नहीं, सोनू, फिर भी देखते हैं।”

फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुंच गए। हमने घर पहुंचकर देखा कि माँ रसोई में खाना बना रही थीं। हम लोगों ने पहले पांच मिनट तक रेस्ट किया, और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठाकर रसोई में कपड़े बदलने चली गईं। मैं हॉल में ही बैठा रहा। रसोई में पहुंचकर दीदी ने पर्दा खींचा, और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दीं। फिर हल्के से आँख मार दी, जैसे कह रही हों, “देख, ये तेरे लिए।”

मैं चुपचाप अपनी जगह से उठकर पर्दे के पास जाकर खड़ा हो गया। दीदी मुझसे सिर्फ पांच फीट की दूरी पर खड़ी थीं, और माँ हम लोगों की तरफ पीठ करके खाना बना रही थी। माँ दीदी से कुछ बातें कर रही थीं। दीदी माँ की तरफ मुड़कर उनसे बातें करने लगीं, फिर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठाकर अपने सिर के ऊपर ले जाकर उतार दीं। टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदी हुई ब्रा दिखने लगी। वाह, क्या ब्रा थी! काली, नेट वाली, जिसमें उनकी चूचियां आधी-आधी झांक रही थीं, जैसे दो रसीले फल किसी जाल में फंसे हों।

फिर दीदी ने फौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और स्कर्ट भी उतार दी। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ अपनी ब्रा और पैंटी में थीं। दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पैंटी खरीदी थी। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थी, और उसके साथ पैंटी में भी खूब लेस लगा हुआ था। मुझे दीदी की ब्रा से उनकी चूचियों के आधे-आधे दर्शन हो रहे थे। फिर मेरी आँखें दीदी की पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं।

दीदी की पैंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ-साफ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे। मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पैंटी में अपनी आँखें फाड़-फाड़कर देखता रहा। मैंने दीदी को सिर्फ एक या दो मिनट ही देखा होगा, लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटों से दीदी को देख रहा हूँ।

दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे। सारे वक्त दीदी मुझसे आँखें चुरा रही थीं। शायद दीदी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पैंटी में खड़े होने में कुछ अटपटा सा लग रहा था। जैसे ही दीदी ने मुझे देखा, मैंने इशारे से उन्हें पीछे घूम जाने के लिए कहा। दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गईं, लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ ही रखा।

मैं दीदी को अब पीछे से देख रहा था। दीदी की पैंटी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी। उनकी गोल, मांसल गांड इतनी सुडौल थी कि मेरा मन कर रहा था कि उसे पकड़कर चूम लूं। मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूंगा, तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाऊंगा।

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थोड़ी देर बाद दीदी मेरी तरफ फिर मुड़कर खड़ी हो गईं और अपनी मैक्सी उठा ली। मैंने इशारे से कहा कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। दीदी बस मुस्कुरा दीं और अपनी मैक्सी पहन लीं। मैं फिर भी इशारा करता रहा, लेकिन दीदी ने मेरी बात नहीं मानी। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी, और मैं पर्दे के पास से हटकर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।

दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गईं। अपने कपड़ों को अलमारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गईं। मैं दीदी को सिर्फ ब्रा और पैंटी में देखकर इतना गर्म हो गया था कि अब मुझे भी बाथरूम जाना था और मुठ मारना था। मेरे दिमाग में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी। पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर समंदर के किनारे गए, फिर एक पत्थर के पीछे बैठे। मैंने दीदी की चूचियों को पकड़कर मसला, और दीदी चूची मसलवाकर झड़ गईं। फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पैंटी और ब्रा चेंज की थी।

एकाएक मेरे दिमाग में ये बात आई कि दीदी की उतरी हुई पैंटी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झांककर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं। मैंने झट से उठकर बैग में से दीदी की उतरी हुई पैंटी निकालकर अपनी जेब में रख ली। मैंने जल्दी से जाकर बाथरूम का दरवाजा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया, साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया।

फिर मैंने दीदी की गीली पैंटी को खोला और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहां पर दीदी की चूत का छेद था, वहां पर सफेद-सफेद, गाढ़ा-गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ था। जब मैंने वो जगह छुई, तो मुझे चिपचिपा सा लगा। मैंने पैंटी को अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था। मैंने पैंटी की चूत वाली जगह को चाटने लगा। वाह, दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद था, मजा आ गया।

मैं दीदी की पैंटी को चाटता रहा और ये सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ। मैं ये सोचते-सोचते झड़ गया। मैंने अपने लौड़े को हिला-हिलाकर साफ किया, फिर पेशाब की, और दीदी की पैंटी और ब्रा अपनी जेब में रखकर वापस हॉल में पहुंच गया।

थोड़ी देर बाद जब दीदी को अपनी भीगी पैंटी की याद आई, तो वो उसको बैग में ढूंढने लगीं। शायद दीदी को उसे साफ करना था। दीदी को उनकी पैंटी और ब्रा बैग में नहीं मिली। थोड़ी देर बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया, तो मुझसे पूछा, “मुझे अपनी पुरानी पैंटी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।”
मैंने कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।
“तू हंस क्यों रहा है? इसमें हंसने की क्या बात है?” दीदी ने पूछा।
मैंने दीदी से पूछा, “तुम्हें अपनी पुरानी पैंटी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पैंटी मिल गई।”
तब दीदी कुछ-कुछ समझकर मुझसे पूछा, “उन्हें तुमने लिया है?”
मैंने भी कह दिया, “हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ्ट समझकर।”
तब दीदी बोलीं, “सोनू, वो गंदे हैं।”
मैं मुस्कुराकर बोला, “मैंने उनको साफ कर लिया।”
लेकिन दीदी ने परेशान होकर पूछा, “क्यों?”
मैंने कहा, “मैं बाद में दे दूंगा।”
अब माँ कमरे में आ गई थीं, इसलिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा।

अगले सुबह मैंने दीदी से पूछा, “क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?”
दीदी ने हंसते हुए पूछा, “कौन दिखाएगा?”
मैं भी हंसकर बोला, “मैं।”
दीदी बोलीं, “मुझे क्या पता तुझे कौन सा सिनेमा देखने जाना है।”
मैंने कहा, “हम लोग न्यू थिएटर चलें? वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।”
“ठीक है, चल चलें,” दीदी मुझसे बोलीं।

असल में दीदी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ एक बहाना था। मेरे दिमाग में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था। पिछले कई दिनों से मैंने दीदी की चूचियों को कई बार दबाया था, मसला था, और दो-तीन बार चूसा भी था। अब मुझे और कुछ चाहिए था, और इसीलिए मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था। मुझे दीदी को छूने का अच्छा मौका सिनेमा हॉल में मिल सकता था, या फिर सिनेमा के बाद और कहीं ले जाने के बाद मिल सकता था।

जब दीदी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगीं, तो मैं धीरे से बोला, “आज तुम स्कर्ट पहनकर चलो।” दीदी बस थोड़ा सा मुस्कुरा दीं और स्कर्ट पहनने के लिए राजी हो गईं। ठंड का मौसम था, इसलिए मैं और दीदी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था। मैंने आज ये सिनेमा हॉल जानबूझकर चुना था, क्योंकि ये हॉल शहर से थोड़ा सा बाहर था, और वहां जो सिनेमा चल रहा था, वो दो हफ्ते पुराना हो गया था। मुझे मालूम था कि हॉल में ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं होगी।

हम लोग वहां पहुंचकर टिकट ले लिए और हॉल में जब घुसे, तो किसी और सिनेमा का ट्रेलर चल रहा था। इसलिए हॉल के अंदर अंधेरा था। जब अंदर जाकर मेरी आँखें अंधेरे में देखने में कुछ अभ्यस्त हो गईं, तो मैंने देखा कि हॉल में कुछ लोग ही बैठे हुए हैं, और मैं एक किनारे वाली सीट पर दीदी को ले जाकर बैठ गया। हम लोग जहां बैठे थे, उसके आसपास और कोई नहीं था। और जो भी हॉल में बैठे थे, वो सब किनारे वाली सीट पर बैठे हुए थे।

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हम लोग बैठ गए और सिनेमा देखने लगे। मैं सिनेमा देख रहा था, और दिमाग में सोच रहा था कि मैं पहले दीदी की चूची को दबाऊंगा, मसलूंगा, और अगर दीदी मान गईं, तो फिर दीदी की स्कर्ट के अंदर अपना हाथ डालूंगा। मैंने करीब पंद्रह मिनट तक इंतजार किया और फिर अपनी सीट पर आराम से पैर फैलाकर बैठ गया। संगीता दीदी मेरे दाहिने तरफ बैठी थीं।

मैं धीरे से अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर दीदी की जांघों पर रख दिया। फिर मैं धीरे-धीरे दीदी की जांघों पर स्कर्ट के ऊपर से हाथ फेरने लगा। दीदी कुछ नहीं बोलीं। दीदी बस चुपचाप बैठी रहीं, और मैं उनकी जांघों पर हाथ फेरने लगा। अब मैं धीरे-धीरे दीदी की स्कर्ट को पैरों से ऊपर उठाने लगा, जिससे कि मैं अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल सकूं। दीदी ने मुझे रोका नहीं और ऊपर से मेरे कानों के पास अपना मुंह लाकर बोलीं, “कोई देख न ले।”

मैंने इधर-उधर देखकर धीरे से बोला, “नहीं, कोई नहीं देख पाएगा।”
दीदी फिर बोलीं, “स्क्रीन की लाइट काफी ज्यादा है, और इसमें कोई भी हमें देख सकता है।”
मैंने दीदी से कहा, “अपना जैकेट उतारकर अपनी गोद में रख लो।”
दीदी ने थोड़ी देर रुककर अपनी जैकेट उतारकर अपनी गोद में रख ली, और इससे उनकी जांघ और मेरा हाथ दोनों जैकेट के अंदर छुप गए।

मैं अब अपना हाथ दीदी की स्कर्ट के अंदर डालकर उनके पैरों और जांघों को सहलाने लगा। दीदी फिर फुसफुसाकर बोलीं, “कोई हमें देख न ले!”
मैंने दीदी को समझाते हुए कहा, “हमें कोई नहीं देख पाएगा। आप चुपचाप बैठी रहो।”

मैंने अपना हाथ अब दीदी की जांघों के अंदर तक ले जाकर उनकी जांघ के अंदरूनी भाग को सहलाने लगा और धीरे-धीरे अपना हाथ दीदी की पैंटी की तरफ बढ़ाने लगा। मेरा हाथ इतना घूम गया कि दीदी की पैंटी तक नहीं पहुंच रहा था। मैंने फिर हल्के से दीदी के कानों में कहा, “थोड़ा नीचे खिसककर बैठो न।”
दीदी ने हंसते हुए पूछा, “क्या, तुम्हारा हाथ वहां तक नहीं पहुंच रहा है?”
“हाँ,” मैंने दबी जुबान से कहा।
दीदी धीरे से हंसते हुए बोलीं, “तुमको अपना हाथ कहां तक पहुंचाना है?”
मैं शरमाते हुए बोला, “तुमको मालूम तो है!”

दीदी मेरी बात समझ गईं और नीचे खिसककर बैठीं। मेरा हाथ शुरू से दीदी की स्कर्ट के अंदर ही घुसा हुआ था, और जैसे ही दीदी नीचे खिसकीं, मेरा हाथ अपने आप दीदी की पैंटी से लग गया। फिर मैंने अपने हाथ को उठाकर पैंटी के ऊपर से दीदी की चूत पर रखा और जोर से दीदी की चूत को छू लिया।

ये पहली बार था कि मैं अपनी दीदी की चूत को छू रहा था। दीदी की चूत बहुत गर्म थी। मैं अपनी उंगली को दीदी की चूत के छेद के ऊपर चलाने लगा। थोड़ी देर बाद दीदी फुसफुसाकर बोलीं, “रुक जाओ, नहीं तो फिर से मेरी पैंटी गीली हो जाएगी।” लेकिन मैंने दीदी की बात को अनसुनी कर दी और दीदी की चूत के छेद को पैंटी के ऊपर से सहलाता रहा।

दीदी फिर से बोलीं, “प्लीज, अब मत करो, नहीं तो मेरी पैंटी और स्कर्ट दोनों गंदी हो जाएंगी।” मैं समझ गया कि दीदी बहुत गर्म हो गईं हैं। लेकिन मैं ये भी नहीं चाहता था कि जब हम लोग सिनेमा से निकलें, तो लोगों को दीदी की गंदी स्कर्ट दिखे। इसलिए मैं रुक गया। मैंने अपना हाथ चूत पर से हटाकर दीदी की जांघों को सहलाने लगा। थोड़ी देर बाद इंटरवल हो गया।

इंटरवल होते ही मैं और दीदी अलग-अलग बैठ गए, और मैं उठकर पॉपकॉर्न और पेप्सी ले आया। मैंने दीदी से धीरे से कहा, “तुम टॉयलेट जाकर अपनी पैंटी निकालकर नंगी होकर आ जाओ।”
दीदी ने आँखें फाड़कर मुझसे पूछा, “मैं अपनी पैंटी क्यों निकालूं?”
मैं हंसकर बोला, “निकाल लेने से पैंटी गीली नहीं होगी।”
दीदी ने तपाक से पूछा, “और स्कर्ट का क्या करें? क्या उसे भी उतारकर आऊं?”
“सिंपल सी बात है, जब टॉयलेट से लौटकर आओगी, तो बैठने से पहले अपनी स्कर्ट उठाकर बैठ जाना,” मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला।

दीदी मुस्कुराकर बोलीं, “तुम बहुत शैतान हो, और तुम्हारे पास हर बात का जवाब है।” जैसा मैंने कहा था, दीदी टॉयलेट में गईं और थोड़ी देर बाद लौट आईं। जब मैं दीदी को देखकर मुस्कुराया, तो दीदी शरमा गईं और अपनी गर्दन झुका लीं। हम लोग फिर से हॉल में चले गए। जब बैठने लगीं, तो दीदी ने अपनी स्कर्ट ऊपर उठा ली, लेकिन पूरी नहीं।

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हम लोगों के जैकेट अपने-अपने गोद में थे, और हम लोग पॉपकॉर्न खाना शुरू किया। थोड़ी देर बाद हम लोगों ने पॉपकॉर्न खत्म किए और फिर पेप्सी भी खत्म कर लिया। फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर नीचे होकर पैर फैलाकर आराम से बैठ गए। थोड़ी देर बाद मैंने अपना हाथ बढ़ाकर दीदी की गोद पर रखी हुई जैकेट के नीचे से ले जाकर दीदी की जांघों पर रख दिया।

मेरे हाथ को दीदी की जांघों से छूते ही दीदी ने अपने जांघों को और फैला दिया। फिर दीदी ने अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर उठाकर अपने नीचे से अपनी स्कर्ट को खींचकर निकाल दिया और फिर से बैठ गईं। अब दीदी हॉल की सीट पर अपनी नंगी चूतड़ों के सहारे बैठी थीं। सीट की रेग्जीन से दीदी को कुछ ठंड लगी, पर वो आराम से सीट पर नीचे होकर बैठ गईं। मैं फिर से अपने हाथ को दीदी की स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मैं सीधे दीदी की चूत पर अपना हाथ ले गया।

जैसे ही मैंने दीदी की नंगी चूत को छुआ, दीदी झुक गईं, जैसे वो मुझे रोक रही हों। मुझे दीदी की नंगी चूत में हाथ फेरना बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे चूत पर हाथ फेरते-फेरते चूत के ऊपरी भाग पर कुछ बालों का होना महसूस हुआ। मैं दीदी की नंगी चूत और उसके बालों को धीरे-धीरे सहलाने लगा। मैं दीदी की चूत को कभी अपने हाथ में पकड़कर कसकर दबा रहा था, कभी अपने हाथ को उसके ऊपर रगड़ रहा था, और कभी-कभी उनकी क्लिट को भी अपनी उंगलियों से रगड़ रहा था।

मैं जब दीदी की क्लिट को छेड़ रहा था, तब दीदी का शरीर कांप सा जाता था। उनको एक झुरझुरी सी होती थी। मैंने अपनी एक उंगली दीदी की चूत के छेद में घुसेड़ दी। ओह भगवान, चूत अंदर से बहुत गर्म थी और मुलायम भी थी। चूत अंदर से पूरी रस से भरी हुई थी। मैं अपनी उंगली को धीरे-धीरे चूत के अंदर और बाहर करने लगा। थोड़ी देर बाद मैंने अपनी दूसरी उंगली भी चूत में डाल दी। ये तो और भी आसानी से चूत में समा गई।

मैंने दोनों उंगलियों से दीदी की चूत को चोदना शुरू किया। दीदी की तेज सांसों की आवाज मुझे साफ-साफ सुनाई दे रही थी। थोड़ी देर बाद दीदी का शरीर अकड़ गया, और कुछ ही देर बाद दीदी शांत होकर सीट पर बैठ गईं। अब दीदी की चूत से ढेर सारा पानी निकलने लगा। चूत का पानी मेरे पूरे हाथ को गीला कर गया। मैं थोड़ी देर रुककर फिर से दीदी की चूत में अपनी उंगलियां चलाने लगा। थोड़ी देर बाद दीदी दोबारा झड़ीं। फिर मुझे जब लगा कि सिनेमा अब खत्म होने वाला है, तो मैंने अपना हाथ दीदी की चूत पर से हटा लिया।

जैसे ही सिनेमा खत्म हुआ, मैं और दीदी उठकर बाहर निकल आए। बाहर आने के बाद मैंने दीदी से कहा, “अगले शो में जो भी उस सीट पर बैठेगा, उसका पैंट या उसकी साड़ी भीग जाएगी।” दीदी मेरी बात सुनकर बहुत शरमा गईं और मुझसे नजर हटा लीं। दीदी टॉयलेट चली गईं, हो सकता था कि अपनी चूत और जांघों को धोकर साफ करने और अपनी पैंटी फिर से पहनने के लिए गई हों।

अभी सिर्फ तीन बजे थे, और मैंने दीदी से बोला, “तो बहुत टाइम है, और माँ भी घर पर सो रही होंगी। क्या तुम अभी घर जाना चाहती हो? वैसे मुझे कुछ प्राइवेट में चलने की इच्छा है। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?”
दीदी मेरी आँखों में झांकती हुई बोलीं, “प्राइवेट में चलने की क्या बात है? वैसे मैं भी अभी घर नहीं जाना चाहती।”
मैं बोला, “प्राइवेट का मतलब है कि किसी होटल में जाना है।”
दीदी बोलीं, “सिर्फ होटल? या और कुछ?”
मैं दीदी से बोला, “सिर्फ होटल या और कुछ! मतलब?”
दीदी बोलीं, “तेरा मतलब होटल के कमरे से है?”
“हाँ, मेरा मतलब होटल के कमरे से ही है,” मैंने कहा।
दीदी ने तब मुझसे फिर पूछा, “होटल के कमरे में ही क्यों?”

मैंने दीदी की आँखों में झांकते हुए बोला, “अभी तक मैंने कई बार तुम्हारी चूची को छुआ, दबाया, मसला, और चूसा है। फिर मैंने तुम्हारी चूत को भी छुआ और उसके अंदर अपनी उंगलियां भी डालीं। और तुमने कभी भी मना नहीं किया। मैं आगे बढ़ने से रुका, तो इस बात से कि हमारे पास पूरी प्राइवेसी नहीं थी। इस बात के डर से कि कोई आ न जाए, या हमें देख न ले। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब होटल के कमरे में जाकर हम लोगों को पूरी प्राइवेसी मिले।”

मैं इतना कहकर रुक गया और दीदी की तरफ देखने लगा कि अब दीदी भी कुछ बोले। जब दीदी कुछ नहीं बोलीं, तो मैंने फिर उनसे कहा, “तुम क्या चाहती हो?”
दीदी मुझसे बोलीं, “मतलब ये हुआ कि तुम इसलिए मेरे साथ होटल जाना चाहते हो, ताकि वहां जाकर तू मुझे अच्छी तरह से छू सके। मेरे दूध को चूस सके, और मेरे पैरों के बीच अपना हाथ डालकर मजा ले सके?”
“ठीक कह रही हो, दीदी। मैं जब भी तुम्हें छूता हूँ, तो हम लोगों के पास प्राइवेसी न होने की वजह से रुकना पड़ता है, जैसे आज सिनेमा हॉल में ही देख लो,” मैंने कहा।
“तो तू मुझे ठीक से और बिना डर के छूना चाहता है। मेरी चूची पीना चाहता है, और मेरी टांगों के बीच हाथ डालकर अपनी उंगलियां चूत में डालकर देखना चाहता है?” दीदी ने पूछा।

मैंने तब थोड़ा झल्लाकर दीदी से कहा, “तुम बिल्कुल सही कह रही हो। और मुझे लगता है कि तुम भी यही चाहती हो।” दीदी कुछ नहीं बोलीं, और मैं उनकी चुप्पी को उनकी हाँ समझ रहा था। फिर दीदी थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोलीं, “कमरे में जाने का मतलब होता है कि हम वो सब भी???”
मैंने तब दीदी को समझाते हुए कहा, “लेकिन तुम चाहोगी, तभी। नहीं तो कुछ नहीं।”
दीदी फिर भी बोलीं, “पता नहीं, सोनू, ये बहुत बड़ा कदम है।”
मैंने तब फिर से दीदी को समझाते हुए बोला, “बाबा, अगर तुम नहीं चाहोगी, तो वो सब काम नहीं होगा, और वही होगा जो तुम चाहोगी। लेकिन मुझे तुम्हारी दोनों मुसम्मियां बिना किसी के डर के पीना है, बस!”

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मैं समझ रहा था कि दीदी मन ही मन चाह तो रही थीं कि मैं उनकी चूची को बिना किसी डर के चूसूं और उनकी चूत से खेलूं। दीदी बोलीं, “बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। लेकिन ये बात तो तय है कि मैं अभी घर नहीं जाना चाहती हूँ।” इसका मतलब साफ था कि दीदी मेरे साथ होटल में और होटल के कमरे में जाना चाहती हैं।

इसलिए मैंने पूछा, “तो होटल चलें?” दीदी मेरे साथ चल पड़ीं। मैं बहुत खुश हो गया। दीदी मेरे साथ होटल में चलने के लिए राजी हो गई थीं। मैं खुशी-खुशी होटल की तरफ चल पड़ा। मैं इतना समझ गया था कि शायद दीदी मुझे खुलकर अपनी चूची और चूत छुआना चाहती हैं, और हो सकता है कि वो बाद में मुझसे अपनी चूत भी चुदवाना चाहती हों। ये सब सोच-सोचकर मेरा लौड़ा खड़ा होने लगा। मैं सोच रहा था कि आज मैं अपनी दीदी को जरूर चोदूंगा। मैं बहुत खुश था और गर्म हो रहा था।

मुझे मालूम था कि उस सिनेमा हॉल के पास दो-तीन ऐसे होटल हैं, जहां पर कमरे घंटे के हिसाब से मिलते हैं। मैं एक-दो बार उन होटलों में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ आ चुका हूँ। मैं वैसे ही एक होटल में अपनी दीदी को लेकर गया और वहां बात करके एक कमरा तय किया और कमरे का किराया भी दे दिया। होटल का वेटर हम लोगों को एक कमरे में ले गया।

जैसे ही वेटर वापस गया, मैंने कमरे के दरवाजे को अच्छी तरह से बंद किया। मैंने कमरे की खिड़की को भी चेक किया और उनमें पर्दा डाल दिया। तब तक दीदी कमरे में घुसकर कमरे के बीच में खड़ी हो गईं। दीदी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, और वो चुपचाप खड़ी थीं। मैं तब बाथरूम में गया और बाथरूम की लाइट को जलाकर बाथरूम का दरवाजा आधा बंद कर दिया, जिससे कि कमरे में बाथरूम से थोड़ी बहुत रौशनी आती रहे। फिर मैंने कमरे की रौशनी को बंद कर दिया।

दीदी आराम से बिस्तर के एक किनारे पर बैठ गईं। कमरे में रौशनी बहुत कम थी, लेकिन हम लोग एक-दूसरे को देख पा रहे थे। मैं अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा और दीदी से बोला, “तुम भी अपने कपड़े उतार दो।” दीदी ने भी कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जैसे ही मैंने अपना पैंट खोला, तो मैंने देखा कि दीदी भी अपनी ब्रा और पैंटी उतार रही हैं।

अब दीदी मेरे सामने बिल्कुल नंगी हो चुकी थीं। मैं समझ गया कि दीदी भी आज अपनी चूत चुदवाना चाहती हैं। अब मैं धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ा और जाकर दीदी के बगल में बैठ गया। पलंग पर बैठकर मैंने दीदी को अपनी बाहों में भर लिया और उन्हें अपने पैरों के बीच खड़ा कर दिया। कमरे की हल्की रौशनी में भी मुझे अपनी दीदी की नंगी जवानी और मादक बदन साफ-साफ दिख रहा था, और मुझे उनकी नंगी चूचियों को पहली बार देखकर मजा आ रहा था।

मैंने अब तक दीदी को सिर्फ कपड़ों के ऊपर से देखा था, और मुझे पता था कि दीदी का बदन बहुत सुडौल और भरा हुआ होगा, लेकिन इतनी अच्छी फिगर होगी, ये नहीं पता था। दीदी की गोल संतरे सी चूचियां, पतली सी कमर, और गोल-गोल सुंदर से चूतड़ों को देखकर मैं तो जैसे पागल ही हो गया। मैं धीरे से अपने हाथों में दीदी की चूचियों को लेकर धीरे-धीरे बड़े प्यार से दबाने लगा।

“दीदी, तुम्हारी चूचियां बहुत प्यारी हैं, बहुत ही सुंदर और ठोस हैं,” मैंने दीदी से कहा, और दीदी ने मुस्कुराकर अपने हाथ मेरे कंधों पर रख दिए। मैंने झुककर अपने होंठ उनकी चूचियों पर रख दिए। मैं दीदी की चूचियों के निप्पलों को चूसने लगा, और दीदी सिहर उठीं। मैं अपने मुंह को और खोलकर दीदी की एक चूची को मेरे मुंह में भर लिया और चूसने लगा। मेरा दूसरा हाथ दीदी की दूसरी चूची पर था और उसको धीरे-धीरे दबा रहा था। फिर मैं अपना मुंह जितना खोल सकता था, खोलकर दीदी की चूची को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा।

अपने दूसरे हाथ को मैं धीरे से नीचे लाकर दीदी की चूत को पहले सहलाया और फिर धीरे से अपनी एक उंगली चूत के अंदर घुसेड़ दी। मैं कुछ देर तक अपने मुंह से दीदी की मुसम्मी चूसता रहा और अपने दूसरे हाथ की उंगली दीदी की चूत के अंदर-बाहर करता रहा। मुझे लग रहा था कि दीदी आज अपनी चूत मुझसे जरूर चुदवाएंगी। थोड़ी देर बाद मैंने अपना मुंह दीदी की चूची पर से हटाकर दीदी को इशारे से पलंग पर लेटने के लिए बोला। दीदी चुपचाप पलंग पर लेट गईं, और मैं भी उनके पास लेट गया।

फिर मैं दीदी को अपनी बाहों में भरकर उनके होंठों को चूमने और फिर चूसने लगा। मेरा हाथ फिर से दीदी की चूचियों पर चला गया और दीदी की बड़ी-बड़ी चूचियों को अपने हाथों में लेकर बड़े आराम से मसलने लगा। इस वक्त दीदी की चूचियों को मसलने में मुझे किसी का डर नहीं था, और मैं बड़े आराम से दीदी की चूचियों को मसल रहा था।

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चूची मसलते हुए मैंने दीदी से बोला, “तुम्हारी चूचियों का जवाब नहीं, बड़ी मस्त मुसम्मियां हैं। मन करता है कि मैं इन्हें खा जाऊं।” मैंने अपना मुंह नीचे करके दीदी की चूची के एक निप्पल को अपने मुंह में भरकर धीरे-धीरे चूसने लगा। थोड़ी देर बाद मैंने अपना एक हाथ नीचे करके दीदी की चूत पर ले गया और उनकी चूत से खेलने लगा, और थोड़ी देर बाद अपनी एक उंगली चूत में घुसेड़कर अंदर-बाहर करने लगा।

दीदी के मुंह से मादक सिसकारियां निकलने लगीं। थोड़ी देर बाद दीदी की चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया। मैं समझ गया कि दीदी अब चुदवाने के लिए तैयार हैं। मैं भी दीदी के ऊपर चढ़कर उन्हें चोदने के लिए बेताब हो रहा था। थोड़ी देर तक मैं दीदी की चूची और चूत से खेलता रहा और फिर उनसे सट गया।

मैंने दीदी के ऊपर झुकते हुए पूछा, “तुम तैयार हो? बोलो न, दीदी, क्या तुम अपने छोटे भाई का लौड़ा अपनी चूत के अंदर लेने के लिए तैयार हो?” उस समय मैं मन ही मन जानता था कि दीदी की चूत मेरा लंड खाने के लिए बिल्कुल तैयार है। और दीदी मुझे चोदने से ना नहीं करेंगी।

दीदी तब मेरी आँखों में झांकते हुए बोलीं, “सोनू, क्या मैं इस वक्त ना कर सकती हूँ? इस समय तू मेरे ऊपर चढ़ा हुआ है, और हम दोनों नंगे हैं।” दीदी ने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगीं। तब मैंने अपने लंड को अपने हाथ में लेकर दीदी की चूत से भिड़ा दिया। चूत पर लंड लगते ही दीदी “आह! अहह्ह्ह! ओहह्ह्ह्ह!” करने लगीं।

मैंने हल्के से अपनी कमर हिलाकर दीदी की चूत में अपने लंड का सुपाड़ा फंसा दिया। दीदी की चूत बहुत टाइट थी, लेकिन वो इतना रस छोड़ रही थी कि चूत का रास्ता बिल्कुल चिकना हो चुका था। जैसे ही मेरा लंड का सुपाड़ा दीदी की चूत में घुसा, दीदी उछल पड़ीं और चीखने लगीं, “मेरी चूत फट रही है! निकाल अपना लंड मेरी चूत से! मैं मर गई! मेरी चूत फट गई!”

मैंने दीदी के होंठों को चूमते हुए बोला, “दीदी, बस हो गया। थोड़ी देर तक तकलीफ होगी, और फिर मजा ही मजा है।” लेकिन दीदी फिर भी गिड़गिड़ाती रही। मैंने दीदी की कोई बात नहीं सुनी और उनकी चूचियों को अपने हाथों से मजबूती से पकड़ते हुए एक और जोरदार धक्का मारा, और मेरा पूरा का पूरा लंड दीदी की चूत में घुस गया। दीदी की चूत से खून की कुछ बूंदें निकल पड़ीं। मैं अपना पूरा लंड डालने के बाद चुपचाप दीदी के ऊपर लेटा रहा और दीदी की चूचियों को मसलता रहा।

थोड़ी देर बाद दीदी ने मेरे नीचे से अपनी कमर उठाना शुरू कर दी। मैं समझ गया कि दीदी की चूत का दर्द खत्म हो गया है, और वो अब मुझसे खुलकर चुदवाना चाहती हैं। मैंने भी धीरे से अपना लौड़ा थोड़ा सा बाहर खींचा और उसे फिर दीदी की चूत में हल्के झटके के साथ घुसेड़ दिया। दीदी की चूत ने मेरा लंड कसकर पकड़ रखा था, और मुझे लंड को अंदर-बाहर करने में थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ रही थी।

लेकिन मैं भी नहीं रुका और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाना शुरू कर दी। दीदी भी मेरे साथ-साथ अपनी कमर उठा-उठाकर मेरे हर धक्के का जवाब बदस्तूर दे रही थीं। मैं जान गया कि दीदी की चूत रगड़-रगड़कर लंड खाना चाहती है। मैंने भी दीदी को अपनी बाहों में भरकर उनकी चूचियों को अपने मुंह में भरकर धीरे-धीरे लंड उठा-उठाकर धक्के मारना शुरू किया। अब मेरा लंड आसानी से दीदी की चूत में आ-जा रहा था।

दीदी भी अब मुझे अपने बाहों में भरकर चूमते हुए अपनी कमर उचका रही थीं और बोल रही थीं, “भाई, बहुत अच्छा लग रहा है। और जोर-जोर से चोदो मुझे। मेरी चूत में कुछ चींटियां सी रेंग रही हैं। अपने लंड की रगड़ से मेरी खाज दूर कर दो। चोदो, और जोर-जोर से चोदो मुझे।”

मैं अब अपना लंड दीदी की चूत के अंदर डालकर कुछ सुस्ताने लगा। दीदी तब मुझे चूमते हुए बोलीं, “क्या हुआ, तू रुक क्यों गया? अब मेरी चूत की चुदाई पूरी कर, और मुझे रगड़-रगड़कर चोदकर मेरी चूत की प्यास बुझा, मेरे जालिम भाई।”
मैं बोला, “चोदता हूँ, दीदी। थोड़ा मुझे आपकी चूत में फंसे लौड़े का आनंद तो उठा लेने दो। अभी मैं तुम्हारी चूत चोद-चोदकर फाड़ता हूँ।”
मेरी दीदी बोलीं, “साले, तुझे मजा लेने की पड़ी है, अभी तो तू मुझे जल्दी-जल्दी चोद। मैं मरी जा रही हूँ!”

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मैं उनकी बात सुनकर जोर-जोर से धक्के लगाने लगा, और दीदी भी मुझे अपने हाथों और पैरों से जकड़कर अपने चूतड़ उछाल-उछालकर अपनी चूत चुदवाने लगीं। मैंने थोड़ी देर तक दीदी की चूत में अपना लंड पेलने के बाद दीदी से पूछा, “कैसा लग रहा है, अपने छोटे भाई का लंड अपनी चूत में डलवाकर?”
मैं अब दीदी से बिल्कुल खुलकर बातें कर रहा था और उन्हें अपने लंड से छेड़ रहा था।

“ये काम हम लोगों ने बहुत ही बुरा किया। लेकिन मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा है,” दीदी मुझे अपने सीने से चिपकाते हुए बोलीं। थोड़ी देर बाद मैं फिर से दीदी की चूत में अपना लंड तेजी से पेलने लगा। कुछ देर बाद मुझे लग रहा था कि मैं अब झड़ने वाला हूँ। इसलिए मैंने अपना लंड दीदी की चूत से निकालकर अपने हाथ से पकड़ लिया और पकड़े रखा।

मैंने दीदी से कहा, “अपने मुंह में लोगी?”
दीदी ने पहले कुछ सोचा, फिर अपना मुंह खोल दिया। मैंने लौड़ा उनके मुंह में दे दिया और अपना वीर्य उनके मुंह में छोड़ दिया। दीदी ने मेरा माल अपने मुंह में भर लिया और उसको गटक लिया। दीदी ने आसक्त भाव से मेरी तरफ देखा, और मैंने अपने होंठ उनके होंठों से लगा दिए।

भाई-बहन की इस चुदाई ने भले ही समाज की मर्यादाओं को भंग कर दिया हो, पर मेरी और मेरी दीदी की कामनाओं को तृप्त कर दिया था।

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