मैंने कई सारी कहानियाँ पढ़ी हैं, और हर एक ने मुझे झकझोर कर रख दिया। उन कहानियों से प्रेरित होकर मैं आज आपके लिए अपनी एक ऐसी कहानी लेकर आया हूँ, जो मैंने अपनी आँखों से देखी थी। ये घटना इतनी जीवंत है कि जब भी मैं उस पल को याद करता हूँ, तो लगता है जैसे ये सब अभी-अभी हुआ हो। इस कहानी को शुरू करने से पहले, मैं आपको उन दो लोगों का परिचय करा देता हूँ, जिनके इर्द-गिर्द ये कहानी घूमती है।
पहला किरदार है मेरी माँ, रेखा, उम्र 38 साल, गोरी, भरे हुए बदन वाली, जिनकी आँखों में हमेशा एक रहस्यमयी चमक रहती है। उनका फिगर इतना आकर्षक है कि गाँव के मर्द उनकी एक झलक पाने को तरसते हैं। उनकी साड़ी हमेशा उनके कर्व्स को और उभारती है, और जब वो चलती हैं, तो उनकी कमर की लचक देखते ही बनती है। दूसरा किरदार है मेरे ताऊ जी, रामलाल, जो मेरी माँ के जेठ हैं, उम्र 60 साल, मझोले कद के, मूंछों वाला चेहरा, और गाँव में एक रौबदार व्यक्तित्व। उनकी पत्नी का देहांत हो चुका है, और अब वो अकेले रहते हैं। उनकी आँखों में एक अनुभवी मर्द की चालाकी और जुनून साफ दिखता है। माँ उन्हें “भैया” कहकर बुलाती हैं, लेकिन मैं उन्हें ताऊ जी ही कहता हूँ।
मेरा नाम राज है, मैं 22 साल का हूँ, कॉलेज में पढ़ता हूँ, और अपने परिवार के साथ शहर में रहता हूँ। हमारे परिवार में मैं, माँ और पापा हैं। मेरे पापा, परिमल, एक सेल्समैन हैं, और उनका काम ऐसा है कि वो महीने में कई-कई दिन बाहर रहते हैं। हमारा गाँव से गहरा नाता है, जहाँ हमारे सारे रिश्तेदार रहते हैं। साल में दो-तीन बार हम गाँव जाते हैं, और हर बार वहाँ का माहौल हमें अपनेपन का एहसास देता है।
ये कहानी उस समय की है जब हम नवरात्रि के लिए गाँव जाने वाले थे। पापा को भी हमारे साथ आना था, लेकिन आखिरी वक्त पर उन्हें कुछ जरूरी काम आ गया। उन्होंने माँ को फोन पर कहा, “रेखा, तुम और राज गाँव चले जाओ, मैं दो-तीन दिन में आ जाऊँगा।”
माँ ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, परिमल। हम चले जाएँगे।”
माँ की आवाज़ में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे वो गाँव जाने के लिए बेताब हों। वो जल्दी-जल्दी पैकिंग करने लगीं, उनकी हरकतों में एक उत्साह था, जो मैं समझ नहीं पाया। अगली सुबह हम ट्रेन से गाँव पहुँचे। स्टेशन पर ताऊ जी हमें लेने आए थे। वो पुराने स्टाइल के कुर्ते-पायजामे में थे, उनकी मूंछें रौब जमा रही थीं। माँ को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गई। माँ ने भी उन्हें देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “कैसे हैं, भैया?”
ताऊ जी ने गहरी नज़रों से माँ को देखा और बोले, “बस, ठीक हूँ, रेखा। परिमल नहीं आया?”
माँ ने साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए कहा, “नहीं, भैया। उन्हें कुछ काम आ गया। वो बाद में आएँगे।”
ताऊ जी ने माँ को ऊपर से नीचे तक देखा, और माँ ने भी उनकी नज़रों का जवाब अपनी आँखों से दिया। मुझे कुछ अजीब सा लगा, जैसे दोनों के बीच कोई छुपा हुआ राज़ हो। हम बैलगाड़ी में बैठे। ताऊ जी ने मुझसे कहा, “राज, तू गाड़ी चला।”
मैंने उत्साह से कहा, “ठीक है, ताऊ जी!”
आप यह धोखेबाज बीवी हमारी वेबसाइट Antarvasna पर पढ़ रहे है।
माँ और ताऊ जी पीछे बैठ गए। गाड़ी चलाते हुए मैंने एक-दो बार पीछे देखा तो पाया कि ताऊ जी का हाथ माँ की जांघ के पास था। माँ ने मुझे देखकर सख्त लहजे में कहा, “आगे देख, राज! गाड़ी संभाल।”
मैंने मुँह फेर लिया, लेकिन मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा। घर पहुँचते ही माँ बाथरूम चली गईं। थोड़ी देर बाद वो बाहर आईं, उनकी साड़ी थोड़ी गीली थी, जैसे उन्होंने जल्दी में नहाया हो। उनकी चाल में एक मादकता थी, जो मैंने पहले कभी नोटिस नहीं की थी।
ताऊ जी ने माँ को देखकर कहा, “रेखा, चल, तुझे खेत दिखा लाऊँ। ताजी हवा खाएँगे।”
माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, भैया। चलिए। शहर की हवा तो अब घुटन देती है।”
मैं भी उनके साथ चल पड़ा। खेतों में पहुँचते ही सरसों की खुशबू हवा में तैर रही थी। ताऊ जी ने माँ को एक किनारे ले जाकर बातें शुरू कीं। मैं थोड़ी दूर खड़ा था, लेकिन मेरी नज़र उन पर थी। मैंने देखा कि ताऊ जी का हाथ धीरे से माँ की कमर पर गया, और फिर उनकी गाण्ड पर। माँ ने हल्के से उनकी तरफ देखा और धीमी आवाज़ में कहा, “भैया, राज इधर है। वो देख लेगा।”
ताऊ जी ने हल्का सा हँसते हुए कहा, “अरे, कुछ नहीं। वो बच्चा है। राज, जरा दूर जा, खेत में घूम ले। मुझे तेरी माँ से कुछ बात करनी है।”
माँ ने मुझे देखकर कहा, “हाँ, राज। तू जा, इधर-उधर देख ले।”
मैंने कुछ नहीं कहा और थोड़ा दूर चला गया, लेकिन मन में शक और बढ़ गया। मैंने सोचा, कुछ तो गड़बड़ है। मैं चुपके से उनके पीछे गया। खेत में एक बड़ा सा पेड़ था, जिसकी आड़ में वो दोनों खड़े थे। माँ पेड़ से सटकर खड़ी थीं, उनकी साड़ी का पल्लू थोड़ा नीचे सरक गया था। ताऊ जी उनके करीब थे, उनका हाथ माँ की साड़ी के अंदर जा रहा था। माँ ने हल्का सा विरोध किया, “भैया, कोई देख लेगा…”
लेकिन उनकी आवाज़ में विरोध कम और मज़ा लेने की चाहत ज़्यादा थी। ताऊ जी ने बिना रुके माँ की साड़ी को और ऊपर उठाया। मैं थोड़ा और करीब गया ताकि उनकी बातें सुन सकूँ। माँ कह रही थीं, “परिमल का लण्ड तो बेकार है। कितने दिन बाद मुझे ऐसा तगड़ा लण्ड मिल रहा है, भैया।”
ताऊ जी ने हँसते हुए कहा, “रेखा, तू तो अभी भी जवान है। तेरी चूत को आज मैं पूरा मज़ा दूँगा।”
आप यह धोखेबाज बीवी हमारी वेबसाइट Antarvasna पर पढ़ रहे है।
माँ की साड़ी अब पूरी तरह कमर तक उठ चुकी थी। उनकी गोरी जांघें चमक रही थीं। ताऊ जी ने अपनी धोती खोल दी, और उनका लण्ड, जो करीब 7 इंच का होगा, पूरी तरह खड़ा था। माँ ने उसे देखकर अपने होंठ चाटे और धीरे से अपनी चूत को अपने हाथों से फैलाया। ताऊ जी ने अपना लण्ड माँ की चूत के मुँह पर रखा और हल्का सा धक्का मारा। माँ के मुँह से एक लंबी सिसकारी निकली, “आआह्ह… भैया, धीरे!”
ताऊ जी ने बिना रुके एक और धक्का मारा, और उनका लण्ड आधा माँ की चूत में घुस गया। माँ की आँखें आनंद से बंद हो गईं। वो पेड़ से और सट गईं, जैसे वो चाहती थीं कि ताऊ जी और गहराई तक जाएँ। ताऊ जी ने उनकी चूचियों को साड़ी के ऊपर से दबाना शुरू किया। माँ की साड़ी अब पूरी तरह से कमर तक थी, और उनकी चूत पूरी तरह खुली थी। ताऊ जी का लण्ड अब पूरी तरह अंदर था, और वो धीरे-धीरे कमर हिलाने लगे। हर धक्के के साथ माँ की सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थीं, “आआह्ह… ऊऊह्ह… भैया, कितना मोटा है… आह्ह!”
ताऊ जी ने माँ की साड़ी का पल्लू पूरी तरह हटा दिया और उनकी ब्लाउज़ की बटन खोल दी। माँ की 36D की चूचियाँ बाहर आ गईं। ताऊ जी ने एक चूची को मुँह में लिया और चूसने लगे, जबकि दूसरी को ज़ोर से मसल रहे थे। माँ की सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गई थीं, “आआह्ह… भैया… और ज़ोर से… ओह्ह… मेरी चूत फट जाएगी!”
लगभग 20 मिनट तक ताऊ जी ने माँ की चूत में धक्के मारे। हर धक्के के साथ माँ की चूचियाँ उछल रही थीं। ताऊ जी ने माँ के होंठों को चूमना शुरू किया, और माँ भी उनके होंठों को चूसने लगी। उनकी जीभ एक-दूसरे से लिपट रही थी। ताऊ जी का लण्ड अब पूरी तरह माँ की चूत में था, और वो तेज़ी से धक्के मार रहे थे। माँ की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “आआह्ह… ऊऊह्ह… भैया… फाड़ दो मेरी चूत… आह्ह!”
आखिरकार, ताऊ जी का शरीर अकड़ गया, और उन्होंने एक लंबा धक्का मारा। माँ की चूत में उनका बीज गिर गया। माँ की आँखें बंद थीं, और उनके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। ताऊ जी ने अपना लण्ड बाहर निकाला, और माँ की चूत से उनका बीज बहने लगा। माँ ने अपनी साड़ी नीचे की और पांच मिनट तक वहीँ लेटी रहीं।
जब माँ उठने लगीं, ताऊ जी ने उन्हें रोक लिया। “रेखा, कहाँ जा रही है? अभी तो गाण्ड की बारी है।”
माँ ने हल्का सा विरोध किया, “भैया, बस… आज के लिए बहुत हुआ।”
लेकिन ताऊ जी ने उनकी बात नहीं मानी। उन्होंने माँ को पेड़ की तरफ झुकाया और उनकी साड़ी फिर से ऊपर उठा दी। माँ की गोल, गोरी गाण्ड चमक रही थी। ताऊ जी ने अपना लण्ड, जो अभी भी खड़ा था, माँ की गाण्ड के छेद पर रखा और एक ज़ोरदार धक्का मारा। माँ की चीख निकल गई, “आआह्ह… भैया… धीरे… मेरी गाण्ड फट जाएगी!”
ताऊ जी ने बिना रुके धक्के मारने शुरू किए। उनका लण्ड धीरे-धीरे माँ की गाण्ड में गहराई तक जा रहा था। माँ की सिसकारियाँ अब दर्द और मज़े के मिश्रण में बदल गई थीं, “आआह्ह… ऊऊह्ह… भैया… कितना बड़ा है… आह्ह!” लगभग 15 मिनट तक ताऊ जी ने माँ की गाण्ड मारी। हर धक्के के साथ माँ की चूचियाँ हिल रही थीं। आखिरकार, ताऊ जी ने एक और लंबा धक्का मारा, और उनकी गाण्ड में उनका बीज गिर गया।
माँ अब पूरी तरह थक चुकी थीं। ताऊ जी ने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें फिर से पेड़ की तरफ झुकाया। “रेखा, अभी एक बार और। तेरी चूत की आग अभी बुझी नहीं।”
आप यह धोखेबाज बीवी हमारी वेबसाइट Antarvasna पर पढ़ रहे है।
माँ ने हल्का सा विरोध किया, “भैया, अब नहीं… मेरी चूत फट जाएगी।”
लेकिन ताऊ जी ने उनकी एक न सुनी। उन्होंने माँ की चूत को फिर से अपने हाथों से फैलाया और अपना लण्ड अंदर डाल दिया। इस बार वो और ज़ोर से धक्के मारने लगे। माँ की सिसकारियाँ फिर से शुरू हो गईं, “आआह्ह… ऊऊह्ह… भैया… धीरे… ओह्ह… मेरी चूत… आह्ह!” ताऊ जी ने माँ की चूचियों को फिर से मसलना शुरू किया, और उनके निप्पल्स को चूसने लगे। माँ अब पूरी तरह उनके कब्जे में थीं। वो हर धक्के का जवाब अपनी कमर हिलाकर दे रही थीं।
लगभग 25 मिनट तक ताऊ जी ने माँ की चूत मारी। हर धक्के के साथ माँ की चीखें और सिसकारियाँ बढ़ रही थीं। आखिरकार, ताऊ जी ने एक आखिरी धक्का मारा, और उनकी चूत में फिर से बीज गिर गया। माँ अब पूरी तरह थक चुकी थीं। वो पेड़ के सहारे लेट गईं, और ताऊ जी भी उनके बगल में लेट गए। दोनों ने कुछ देर बाद अपने कपड़े ठीक किए और खेत से बाहर निकलने लगे।
मैं चुपके से वहाँ से हट गया ताकि उन्हें पता न चले कि मैंने सब देख लिया। घर वापस पहुँचने पर ताऊ जी माँ को देखकर मुस्कुराए, जैसे वो कह रहे हों कि राज को कुछ नहीं पता। मैंने भी कुछ नहीं होने दिया और ऐसा दिखाया जैसे मुझे कुछ नहीं मालूम।
आपको ये कहानी कैसी लगी? क्या आपने कभी ऐसी कोई घटना देखी या सुनी है? कमेंट में बताएँ!